भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग अंधेरे में / सुभाष काक
Kavita Kosh से
क्या वसंत का
नृत्य इतना सुंदर है‚
कि तुम इसके रंग
रात में भी
बता सकती हो?
क्या तुम
मिट्टी की गंध
वापस बुला सकते हो?
जंगल में पेड़ों की भास
इतनी मादक है
मुझे भय है
मैं अगला श्वास लेना भूल न जाऊँ।
वसंत के रंग
पहाड़ियों के मध्य
घाटी में फैल गए।
आकाश की तनी हुई चादर
की थरथराहट
से मेरा शरीर काँप उठा।
हृदय जिसने
प्रेम किया है
भूल नहीं सकता।
1 जनवरी 2006