भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग निराला रोटी का / रामावतार चेतन
Kavita Kosh से
पंडित जी ने खाई रोटी
उनकी बड़ी हो गई चोटी!
लालाजी ने खाई रोटी
उनकी तोंद हो गई मोटी!
बाबूजी ने खाई रोटी
उनकी कलम हो गई छोटी!
साधू जी ने खाई रोटी
उनकी चंपत हुई लंगोटी!
रोटी का है रंग निराला
बाबू, साधू, पंडित, लाला