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रंग रहित / निर्देश निधि

तुमने कहा ए स्त्री!
तुम्हारा कोई रंग नहीं
तुम्हारी कोई जाति, कोई धर्म नहीं
मेरा कोई रंग नहीं?
कोई जाति, कोई धर्म नहीं
तो मैं रंगरहित पानी?
तो मैं तरल, सरल
संवाहक घुलनशीलता का
मैं मात्र पानी,
"मात्र?"
पर पानी तो जीवनदायी
मात्र पानी,
तो फिर मैं प्रेमिल सदानीरा
क्या फिर कहा रंग-रहित?
हाँ तो मैं अपने तटबंधों को तोड़ती
रंगरहित पानी वाली नदी
सब रंगों के दर्प लीलती
रंगहीन पानी वाली नदी
पानी ही न?
तो फिर मैं समंदर
दुनिया का छोर दुनिया से जोड़ता विशाल समंदर
तब भी मैं रंगरहित
तो फिर मैं
अपने पानियों में प्रलय घोलता
रंगों के रंग निचोड़ता
समंदर का रंगहीन पानी
मैं रंगरहित पानी ही न?
तो फिर मैं बादलों के पेट भरा
रंगरहित पानी
धरती की अंतहीन क्षुधा बुझाता
उसके रंगहीन आँचल पर हरियाली लीपता गीला पानी
तो भी मैं रंगरहित पानी?
यदि हाँ
तो फिर रहो सराबोर रंगों में
होकर तिरस्कृत
मुझ रंगरहित से
तुम प्यासे आजीवन