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रंग लेकर आ गये हैं द्वार तक साथी / कैलाश झा 'किंकर'

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रंग लेकर आ गये हैं द्वार तक साथी
आ गुलालों से रँगूँ त्यौहार तक साथी।

हो चुका आग़ाज़ होली का चतुर्दिक अब
रँग गया है आज का अख़बार तक साथी।

दुर्गुणों की होलिका करने दहन निकलें
इसलिए हम कर रहे इकरार तक साथी।

प्रेम से, सौहार्द्र से गुलशन सभी महकें
काम आए भावना सहकार तक साथी

मानते हैं लोग कुछ बदनाम करते हैं
हो गया है अब तिजारत प्यार तक साथी।

ज़िन्दगी में रंग भरने आ गयी होली
अब वसंती छा गयी संसार तक साथी।