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रंग है बसंती / विष्णु सक्सेना
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रंग है बसंती
तो रूप है गुलाब
देख लिया तुझको तो छोड़
दी शराब
पीला सा बस्ता ले सरसों के फूल,
जाते हैं पढ़ने को अपने स्कूल,
अनपढ़ भी बैठे है खोल
कर किताब।
आपस में बतियाते पीपल के पात,
खूब रात रानी के संग कटी रात,
सुनकर ये चम्पा पर
आया शबाब
गदराये गेंदे और सूरज मुखी,
वासंती मौसम में सब हैं दुखी,
हरियाली पतझड़ से ले
रही हिसाब