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रंजो-अलम में डूबी हुई ज़िन्दगी मिली / ईश्वरदत्त अंजुम

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रंजो-अलम में डूबी हुई ज़िन्दगी मिली
लिपटी हुई ग़मों में मुझे हर खुशी मिली

आंखों में अश्क़ दिल में हैं नाकाम हसरतें
हंस के कभी न मुझ से मेरी ज़िन्दगी मिली

हंसते हुए गुलों के कतारों के दरमियाँ
अफसुर्दगी में डूबी हुई इक कली मिली

देखा उन्हें तो दिल को हुआ कुछ सुकूं नसीब
पज-मुर्दा दिल को मेरे ज़रा ताज़गी मिली

तारीकियां न दूर मुक़द्दर की हो सकी
हर शमअ जो मुझे मिली बुझती हुई मिली

दिल ले के अब वो कहते हैं लौटाएं क्यों भला
किस्मत में हम को राह में ये शय गिरी मिली

अंजुम हमेशा मुझसे गुरेजां रही हयात
इक पल न हंस के मुझसे मिरी ज़िन्दगी मिली।