भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रगों में रात से ये ख़ून सा रवाँ है क्या / शहराम सर्मदी
Kavita Kosh से
रगों में रात से ये ख़ून सा रवाँ है क्या
वो दर्द-ए-इश्क़ हक़ीक़त में जावेदाँ है क्या
परिंद किस लिए करते हैं आशियाँ से कूच
उन्हें भी हाजत-ए-यक-गोशा-ए-अमाँ है क्या
ये हम जो छूते हैं हर रोज़ चाँद तारों को
हमारे पाँव तले कोई आसमाँ है क्या
हवा में खेल रहा है जो अब्र की सूरत
किसी मकान से उड़ता हुआ धुआँ है क्या