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रग चट्ठा / कुंदन अमिताभ
Kavita Kosh से
जों एतने रग छौं
तेॅ आबऽ
धुइयाँ सें भरलऽ
इ भंसा में
आरू आँखी केरऽ लोर
संघारी-संघारी
जलखय आरू कलव्वऽ
केॅ स्वदगरऽ बनाबऽ।
जों एतने रग छौं
तेॅ आबऽ
गरतरऽ सम्हारऽ
आपनऽ नूनू के कानला पर
लोरी सुनाबऽ
लारी सुनाबै लेॅ
मीट्ठऽ राग बनाबऽ।
जांे एतने रग छौं
तेॅ आबऽ
जनानी बनी जा
दुःख होला पर हँस्सऽ
तकलीफ होला पर नाचऽ
आपनऽ जिनगी खरची-खरची
मरदऽ के जीवन सँवारऽ।