दिन भर सूरज के
आक्र्मण झेलती झेलती
संध्या पड़े बेहाल
पृथ्वी देख कर
उतर कर आगई रज्ननी बाला व
कटोरा हाथ में लेकर
घाव पर मरहम लगाती
शमन कर पीर् घावॉ की
डाल देती नींद की चादर
दिन भर ज़िंदगी के लिए
संघर्ष करते शाम तक
बेहाल हुए आदमी को
देख कर रजनी वाला
उतर आती आकाश से
घाव सहला कर
डाल देती है चादर सपनो भरी
रजनी वाला के हाथ मैं
जाने क्या जादू है कि
हाथ फेरते ही
सारे दर्द हो जाते हवा
रात भर रजनी बाला
साकी बनी
घूमती है घर-घर घनी पीड़ा को
पिलाती जाम भर-भर कर
डाल देती है नशे में
डुबो कर चादर,॥