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रणबांकुरे / संतोष श्रीवास्तव

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दूर-दूर तक फैले
हरे, भूरे, गेरू रंग के
पर्वतों के बीच से
झांकता टाइगर हिल
शून्य से भी 50 डिग्री नीचे
हाड़ कँपाता तापमान

दुश्मन की मचाई
सैनिक बंकरों पर
भारी तबाही के तहत
असाधारण रणनीति लेकर
कूद पड़े थे वीर जवान
मातृभूमि की रक्षा
मर मिटने का जज़्बा
सिर पर कफन बंधा
कि मर मिटेंगे
दुश्मन को खदेड़ कर रहेंगे
दुश्मन हमें जीने नहीं देगा
तो क्या हम उसे जीने देंगे

कारगिल,मुश्की,द्रास
बटालिक,नूबरा
कांप उठा था
बंदूकों, हथगोलों की
दिल दहला देने वाली आवाज
निकल पड़े थे नागरिक भी
सैनिकों के क़दम से क़दम मिलाने

कारगिल युद्ध के मैदान में
बदल चुका था

देख रही हूँ
सफेद रंग से पुती
ईटों से बना
लाल ,हरे ,सफेद रंगों से सजा
ए 1-105 लिखा
शहीद स्मृति स्थल

अनायास जुड़ जाते हैं हाथ
भीग जाती है आँखें
होठ थरथराते हैं
अमर शहीदो तुम्हें प्रणाम