भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रथ ठाड़े करो रघुबीर / बुन्देली
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
रथ ठांड़े करो रघुबीर,
तुम्हारे संग मैं चलूं वनवास खों।
अरे हां जी तुम्हारे,
काहे के रथला बने, है
अरे काहे के डरे हैं बुनाव
तुम्हारे संग ...
अरे हां हो हमारे,
चन्दन के रथला बने,
और रेशम डरे हैं बुनाव,
तुम्हारे संग ...
अरे हां जी तुम्हारे,
रथ में को जो बैठियो,
और हां जी रानी सीता,
रथ में बैठियो,
राजा राम जी हैं हांकनहार,
तुम्हारे संग ...
रथ ठांड़े करो...