भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रम्य प्रभात / प्रताप नारायण सिंह
Kavita Kosh से
कितना रम्य प्रभात !
नील-गगन को भेद किरण-दल
वसुधा पर उतरा
उत्तल अवतल हरित गात पर
कंचन-कण बिखरा
अंबर से धरणी पर झरता
मंजुल नेह-प्रपात
नवल छुवन से अनुप्राणित हो
विहँसें पुष्प, लता
मृदुल वृन्त संप्रेषित करते
चहुँदिश कोमलता
उच्छृंखल मारुत-झोंके से
लहराता हर पात
विकल भ्रमर का सुमन पटल पर
मधुर मदिर गुंजन
मधु पाने की अभिलाषा का
उत्कट अभिव्यंजन
दिग-दिगंत, मकरन्द-गंध भर
बहे सुवासित वात