भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रविवार का गीत / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
काम मिला जो झट-पट कर लो सन्ध्या है शनिवार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।
कल खेलेंगे चोर-सिपाही
देंगे मोटे राम गवाही
नहीं चलेगी तानाशाही
अब्दुल्ला के सिर पर होगी टोपी थानेदार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।
छुक-छुक, छुक-छुक रेल चलेगी
भीड़-भाड़ में सीटी देगी
जो बैठेगा टिकट लगेगी
बिना टिकट वाले पर होगी डिगरी पाँच हज़ार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।
ये अपना लकड़ी का घोड़ा
खाकर इक टहनी का कोड़ा
झट-पट पहुँचेगा अलमोड़ा
जब सरपट दौड़ेगा ऐसी-तैसी होगी कार की ।
कल मैदानों में गूँजेगी जय अपने इतवार की ।।