रविवार की / संगीता गुप्ता
रविवार की
मीठी, सुस्त तन्द्रा को
झटक कर
सोम की सुबह
लौट रही हूँ
बेटे को स्कूल पहुँचा
अनायास ही
वह दिखा
सौम्य, सजीला
मानो परी देष से
लौटा कोई राजकुमार
दस को छूती उम्र
झकझक स़फेद यूनीफार्म में
मुस्तैदी से
पीठ पर भारी बस्ता
और कन्धे पर
पानी की बोतल संभालता
स्कूल बस की प्रतीक्षा में
बस स्टाप पर खड़ा
दोनो हथेलियों के बीच
अटके नोटबुक से
मंडे टेस्ट का सबक़
दोहराते हुए
और
देर तक
उसे निहारती
सोचती हूँ
यह मासूम तो
जानता भी नहीं३३
कूछ काम नहीं आयेगा
पढ़ा, याद किया
स्कूल की किताब से
जाने कैसे
जूझेगा जीवन से
कोई नहीं सिखायेगा उसे
जीने की कला
स्कूल या
घर में
औंर
हमारी उम्र तक
पहुँचते - पहुँचते
कहीं जान पायेगा
खो गये बचपन के
छोटे - छोटे
सुखों का अर्थ