रसिकों की दाढ़ी के नीचे / ओबायद आकाश / भास्कर चौधुरी
रंगीन टेट्रॉन तकिये पर
नीन्द को उलट-पलट कर खेल रहे हो तुम
टीन की छत पर आसमान की छाती झुकी चली आती है
इस उत्तेजना के क्षणों में
ख़ून की इच्छा से दीगर
कुछ भी समझ में नहीं आता है
उतार-चढ़ाव भरे गहरे उच्चारणों को
मिला है पुस्तकों से उपहास
हरी कलमी ने भी मान लिया है पानी की उत्तेजना को
लगातार हो रहे युद्ध के प्रभाव से क्लान्त भोर के आकाश में
उभर आता है रवीन्द्रनाथ का चेहरा
चमकती बिजली के प्रकाश से आलोकित है पद्मा नदी पर नाव
मानों जैसे किसी भी तरह नहीं बुझ रही है आँखों में ख़ामख़याली
रसिकों की दाढ़ी के नीचे छुपी हुई है बारिश
टेराकोटा कला की सफलता के चलते
तुम्हारी पढ़ने की क्षमता की तहें
ईश्वर की बेरहम आग में झुलस रही है ....
बांग्ला से अँग्रेज़ी में अनुवाद : महफ़ूज़ अल-होसैन
अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : भास्कर चौधुरी