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रस के लोभी / ज्योत्स्ना शर्मा
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85
रस के लोभी
भँवरे मँडराते
चतुर कली
देख-देख मुस्काए
पर हाथ न आए ।
86
सागर हुआ
मिलने को बेकल
धीमे-धीमे ही
बहती कल-कल
कहती रही.... कल !
87
चाहें तुम्हें,ये
बताया ही न गया
लाज घूँघट
चाहके भी उनसे
हटाया ही न गया !
88
बड़ी बेदर्द
सावन की झड़ी है
उषा- सुंदरी
मिलने सजन से
बेकल- सी खड़ी है !
89
मिलने आया
द्युतिमान सूरज
उषा मुस्काए
बैरिन है बदली
झट चुरा ले जाए ।
90
ढोल-नगाड़े
बजा रहा सावन
नाचे बरखा
कहीं उगे सपने
कहीं डूबा है मन !
91
भरा-भरा है !
रातभर सावन
क्यों रोता रहा !
भला दर्द किसका
मन भिगोता रहा !
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