भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से / आरज़ू लखनवी
Kavita Kosh से
रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से।
चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी पुकार के॥
पूछी थी छेड़कर जो बात, कहने न दी वो बात भी।
तुमने खटकती फ़ाँस को छोड़ दिया उभार के॥