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रहस्य / मोहिनी सिंह
Kavita Kosh से
रहस्य के खुलते ही बहुत तेज़ आँखें मीच लेती हूँ मैं
नहीं, खुलने से पहले ही
और पार करती हूँ कांपते क़दमों से
रहस्यों का रहस्यमयी रास्ता
और आगे एक और रहस्य न होने की
प्रार्थना करती हूँ तुमसे
और मनाती भी हूँ कि खुल जाये जो भी है
कि मुझे जानना है हर रहस्य
और/या जानना है कि जान लिया है मैंने हर रहस्य
और मानना है कि तुमने कुछ नहीं छिपाया
पर हर खुलता रहस्य एक रहस्य ही बनाता है
कि अभी बाकी हों ऐसे और रहस्य
हाँ रहस्यों का होना न होना
दोनों रहे रहस्य।
उफ़
काश मैं तुमसे कम रहस्य रखती
कम से कम तुम पर शक तो न करती।