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रहे है रू-कश-ए-नश्तर हर आबला दिल का / 'ममनून' निज़ामुद्दीन

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रहे है रू-कश-ए-नश्तर हर आबला दिल का
ये हौसला है कोई बल्बे-हौसला दिल का

अबस नहीं है ये वाबस्त-ए-परेशानी
किसी की ज़ुल्फ़ को पहुँचे है सिलसिला दिल का

हुजूम-ए-ग़मज़ा-ओ-ख़ैल-ए-करिश्मा लश्कर-ए-नाज़
अजब सिपाह से ठहरा मुक़ाबला दिल का

कहूँ मैं क्या कि हुआ कैसे बे-जगह माइल
है अपने बख़्त का शिकवा नहीं गिला दिल का

शब-ए-फ़िराक़ ने छोड़ा न सब्र-ओ-ताब-ए-शकेब
लगी ये आग कि अस्बाब सब जला दिल का