भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रहै तै रहै बेटी की ढ़ालां करकै ख्याल कुटी पै / मेहर सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जवाब ऋषि का

रात अंधेरी गिरती पड़ती आगी चाल कुटी पै।
रहै तै रहै बेटी की ढ़ालां करकै ख्याल कुटी पै।टेक

के घरक्यां तै हुई लड़ाई थारी आपस कै म्हां खिंचगी
ऊक चूक बणी तेरी गैल्यां न्यूं मेरे भी जचगी
दखै गर्भवती तूं घर तै भांजी आंख जमा तेरी मिचगी
मेरी शरण में आगी बेटी समझ मरण तै बचगी
ईश्वर चाहवै भला तेरा एक होज्या लाल कुटी पै।

तेरी ओड़ की शंका बेटी न्यूं बत्ती डर लागै हे
जवान अवस्था जंगल कै म्हां कदे तृष्णा जागै हे
फेर कामदेव का गोला भर कै कदे मेरे उपर दागै हे
उस हूर मेनका की ढालां मनै बेहुदा कर भागै हे
उस विश्वामित्र आली बणज्या मेरी मिशाल कुटी पै।

तनै चाट मशाले भोजन चाहिएं जंगल मैं फल पाते
दोनूं बख्तां पेट भरण नै जंगल में मिल जाते
मनै मन मार्या और ईन्द्री जीती ये साधू के नाते
दखे हम योगी अवधूत महात्मा सदा ईश्वर का गुण गाते
कदे सामण फागण के गीतां की लावै ताल कुटी पै।

पीहर कैसी समझ कुटी नै और तंनै के चाहिये
दोनूं बखतां नहा धो कै नित भजन कीर्तन गाईये
जै कोए माणस आवै बाहर तै मत हंस उस तै बतलाईये
तनै मेहर सिंह की याद सतावै तै बेशक चाली जाईये
सिंगापुर कश्मीर बरोणा ना बंगाल कुटी पै।