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रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ / मजाज़ लखनवी

रह-ए-शौक़ से अब हटा चाहता हूँ|
कोशिश हुस्न की देखना चाहता हूँ|

कोई दिल-सा दर्द आशना चाहता हूँ,
रह-ए-इश्क़ में रहनुमा चाहता हूँ|

तुझी से तुझे छीनना चाहता हूँ,
ये क्या चाहता हूँ ये क्या चाहता हूँ|

ख़ताओं पे जो मुझ को माइल करे फिर,
सज़ा और ऐसी सज़ा चाहता हूँ|

वो मख़्मूर नज़रें वो मदहोश आँखें,
ख़राब-ए-मुहब्बत हुआ चाहता हूँ|

वो आँखें झुकीं वो कोई मुस्कुराया,
पयाम-ए-मुहब्बत सुना चाहता हूँ|

तुझे ढूंढता हूँ तेरी जुस्तजू है,
मज़ा है ख़ुद गुम हुआ चाहता हूँ|

कहाँ का करम और कैसी इनायत,
'मज़ाज़' अब जफ़ा ही जफ़ा चाहता हूँ|