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राइ जमाइन दादी निहूछे देखियो रे कोइ नजरी न लागे / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
राइ<ref>छोटी सरसों, जो कुछ बैंगनी रंग की होती है</ref> जमाइन<ref>अजवायन, एक प्रसिद्ध पौधा; जिसके दाने दवा और मसाले के काम में आते हैं</ref> दादी निहूछे<ref>निछावर करती हैं, एक प्रकार का टोटका</ref> देखियो रे कोइ नजरी न लागे।
सँभरियो<ref>सँभालना</ref> रे कोइ नजरी न लागे॥1॥
राइ जमाइन मइया निहूछे, देखियो रे कोइ नजरी न लागे।
सँभरियो रे कोइ नजरी न लागे॥2॥
राइ जमाइन चाची निहूछे, देखियो रे कोइ नजरी न लागे।
सँभरियो रे कोइ नजरी न लागे॥3॥
राइ जमाइन भउजी निहूछे, देखियो रे कोई नजरी न लागे।
सँभरियो रे कोइ नजरी न लागे॥4॥
शब्दार्थ
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