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राक्षस बानर संग्राम / तुलसीदास / पृष्ठ 3

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राक्षस बानर संग्राम

( छंद संख्या 34, 35 )

 (34)
गहि मंदर बंदर-भालु चले,
सो मनो उनये घन सावनके।

 ‘तुलसी’ उत झुंड प्रचंड झुके,
झपटैं भट जे सुरदावनके। ।

 बिरूझे बिरूदैत जे खेत अरे,
 न टरे हठि बैरू बढ़ावनके।

रन मारि मची उपरी- उपरा
भलें बीर रघुप्पति रावनके।34।

(35)
 
सर तोमर सेलसमूह पँवारत, मारत बीर निसाचरके।
 इत तें तरू-ताल-तमाल चले, खर खंड प्रचंड महीधरके। ।

‘तुलसी’ करि केहरिनादु भिरे भट, खग्गा खगे , खपुबा खरके।
नख-दंतन सों भुजदंड बिहंडत , मुंडसों मुंड परे झरकै।35।