भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राखी / अदनान कफ़ील दरवेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहनें
नहीं आईं
इस बार भी

आतीं भी
तो किस रास्ते
जबकि रास्ते भूल चुके थे मंज़िल

भाइयों की कलाइयाँ सूनी थीं
राखियाँ
राख में धँस गयी थीं

बहनें
राख
बन चुकी थीं...

(रचनाकाल: 2016)