भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राखी / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
बहनें
नहीं आईं
इस बार भी
आतीं भी
तो किस रास्ते
जबकि रास्ते भूल चुके थे मंज़िल
भाइयों की कलाइयाँ सूनी थीं
राखियाँ
राख में धँस गयी थीं
बहनें
राख
बन चुकी थीं...
(रचनाकाल: 2016)