रागनी 5 / सुमित सिंह धनखड़
जरा चादरा हटा दे और चेहरा दिखा दे,
बाग़ जनाने में ठहरण आला तू कौण माणस सै॥
1.
बाग़ जनाना सै आड़ै, हुक्म नहीं आणे का
मर्द जात तनै के ढंग देख्या राह रस्ता पाणे का
बहोत देर तू सो लिया होगा, इब टेम आ लिया जाणे का
चादर तार मनै बता तू माणस कौण ठिकाणे का
सुणता कोन्या बोल तनै इसा कौण माणस सै...
बाग जनाने...
2.
मैं रूक्के मारूं तू सुणता कोन्या पड़या पड़्या सो रह्या सै
मस्ती के म्हैं चूर होकै, कित सुपनां में खो रह्या सै
बाकी कोन्या रही गात में, ज़्यादा छो हो रह्या सै
खून फूकग्या सारा मेरा तू चादर ताण सो रह्या सै
हो रहा सै बेलिहाज कति, तूं कौण माणस सै...
बाग जनाने में...
3.
इतणे रूक्के मारे पाछै, सुत्या शेर जागज्या
चुपचाला इब बैठ्या होकै चाल आड़े तै भागज्या
घोड़ा ब़ंध रहा बाग़ के अंदर, कदे यो भी चरणे लागज्या
मारूं कोलड़े तेरै दाब कै, ना तै नींद अपणी नै त्यागज्या
जणु दारू पीकै लेट्या सै, इसा कोण माणस सै
4.
म्हारे बाग़ में ठहरण का आड़ै, काम कति कोन्या सै
सौ बै कहली जागै कोन्या, के शर्म रति कोन्या सै
मैं फिरूं कवारी सहेली गेल्याँ, मेरै पति कोन्या सै
जनाने बाग़ में सोवै सै, इसा मर्द जति कोन्या सै
सुमित सिंह भेद बता दे, तूं कौण माणस सै
बाग़ जनने में॥
बहुत आवाज़ लगाने के बाद सुल्तान कवर की आँख खुल जाती हैं और जैसे चद्दर चेहरे से हटाता है तो राजकवर की शान देखकर निहालदे एक दम चक्कर-सा खा जाती है और मन-मन में सोचती है कि ये तो भगवान ने ख़ुद जोड़ी का वर यहाँ भेज दिया... क्या कहानी बनती है