सब भूल जाते हैं ...
केवल
याद रहते हैं
आत्मीयता से सिक्त
कुछ क्षण राग के,
संवेदना अनुभूत
रिश्तों की दहकती आग के!
आदमी के आदमी से
प्रीति के सम्बन्ध
जीती-भोगती सह-राह के
अनुबन्ध!
केवल याद आते हैं
सदा !
जब-तब
बरस जाते
व्यथा-बोझिल
निशा के
जागते एकान्त क्षण में,
डूबते निस्संग भारी
क्लान्त मन में!
अश्रु बन
पावन!