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राग-संवेदन (कविता) - २ / महेन्द्र भटनागर

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तुम _
बजाओ साज़
दिल का,
ज़िन्दगी का गीत
मैं _
गाऊँ!
उम्र यों
ढलती रहे,
उर में
धड़कती साँस यह
चलती रहे!
दोनों हृदय में
स्नेह की बाती लहर
बलती रहे!
जीवन्त प्राणों में
परस्पर
भावना - संवेदना
पलती रहे!
तुम _
सुनाओ
इक कहानी प्यार की
मोहक,
सुन जिसे
मैं _
चैन से
कुछ क्षण
कि सो जाऊँ!
दर्द सारा भूल कर
मधु-स्वप्न में
बेफ़िक्र खो जाऊँ!
तुम _
बहाओ प्यार-जल की
छलछलाती धार,
चरणों पर तुम्हारे
स्वर्ग - वैभव
मैं _
झुका लाऊँ!