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राग वाणी / धर्मदिल दास

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आदि मुल नीज नाम नीसानी ।।ध्रु।।
ईश्वर दृष्टिसें कीरणि उपजे सो कारणिसे उपज् माया ।।
मायाकी अंसमे माहातत्त्व उपजे उपजे तीन गुणकाया ।।आदि.।।१।।
अकार उकार मकार उपजे ॐकार आदि अक्षेर सब लखाई ।।
पुरक कुम्भ र्चक हुआ उत्री दलतोन लोक कहाई ।।आदि.।।२।।
यी तीन लोकमें तीन देव बैठा ब्रह्मा विष्णु महेश ।।
पञ्चतत्त्व दश दर्वाज्ञा पचीस् प्रकृतिछपानी ।।आदि.।।३।।
अकास लोकमे श्रीविष्णु वीराजै सश्रफणीके आसन लगाई ।।
संख चक्र गदा धारी अंगुष्ट वनमाला कौस्तुक सुहाई ।।आदि.।।४।।
नाभि कमल मै अकारबने है अष्टसिंहासन ताहा कहाई ।।
कमलासनमे ब्रह्मा बंटे चारो वेदको नीगम गाई ।।आदि.।।५।।
सुन्न्ये र्चकमे शिवशंकर बैठे कोटी सुज्यें जोती बर्साई ।।
चीनुमाया सबघट प्रकासा चिन्ने सब छाई ।।आदि.।।६।।
पवन पानी सबघट डोले आत्मा पूर्ण लखाई ।।
चीनु ज्ञान सव्द सुनीके अचीन्ये सुरथ सब छाई ।।आदि.।।७।।
धर्मदिल विप्र येहपद गाई गुरु चरणमे रखबारी ।।
आदि मुल नीज नाम नीसानी ।।८।।