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राग वाणी / धौकल दास

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                             दोहा
जिकरये नहि पीकर राखिये फिकर राखी उहि उ (दु १ ) षदाई ।।
प्रेम जगायेव चित्त जगाउ चित्त जज्ञो जब जवव जगाउ ।।
जिव जगे जब पिव जगाउ जिव पिव मिलि तव चलि आई ।।
सो स्वरप जो सुरथी लगाई सत्य व्यास सुख ताहिं सोपाहिं ।।
ताहिं समान नहि सुषदुरा वेदपुराण कह्यो सब भाई ।।
 ज्ञानकि डन्डलियो करमे धरी भक्ति कमन्डलु प्रेम रगाई ।।
सत्येको पिन विराग जटासीर सान्त पिहुत सदा उर लगाई ।।
सिल वतो खकियो मृग आसन जोगव जुक्ति खराउ बनाई ।।
पाय वखार मनोमल धोकर धौकल दास बहादुर बैठिसुहाई ।।