राग विद्रोह / माया मृग
हाँ,
मेरी वाणी में विद्रोह का
स्वर है,
असभ्यता की झलक भी !
पर किसी भी अशिष्टता के लिए
जिम्मेदार नहीं हूँ मैं !
मैं उन स्वरों का प्रतिनिधि हूँ
जिन्हें नींव में दबाकर
खड़ा किया गया है
सभ्य शब्दों का विशाल शब्दकोश
नहीं है - तो नहीं है
इस आवाज में
संगीत का कोई सुर या रिद्म
पर इससे मर नहीं जाती मेरी वाणी
न ही मरता है
भीतर का समवेत गान !
सदियों से-
सुरों से वंचित शब्द,
जब पंक्तियों का क्रम
और बरसों की घुटन तोड़कर
पत्थरों की तरह
खड़खड़ाते निकलेंगे
तो राग कल्याण नहीं उभरेगा,
चिल्लाहट उभरेगी !
मेरे साथी, मेरे मसीहा !
तुम इन स्वरों को बेशक
अपने संगीत शास्त्र में
जगह मत देना,
पर राग-विद्रोह की
इस बेढ़ब चिल्लाहट के पीछे छिपे
समवेत गान के संगीत को
नकारना मत !
याद रखना,
संगीत वहीं खत्म नहीं हो जाता,
जितना और जहां तक-
तुम सीख गये हो।