भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राग / राजकिशोर राजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अकस्मात् ही हुआ होगा
कभी दबे पैर आया होगा
ईर्ष्या-द्वेष
घृणा-बैर आदि के साथ
जीवन में राग

फिर न पूछिए !
क्या हुआ ...................
कुछ भी नहीं बचा
बेदाग ।