राजकुमार के लाने की प्रतिज्ञा / प्रेम प्रगास / धरनीदास
चौपाई:-
सुनु मैना मैं अहनिशि जागों। असवर महादेवसों मागों।।
प्रथमहि उत्तम कुल कर होई। राजवंश जेहितुलै न कोई।।
पुनि सुन्दर होह चतुर विदानी। हरिभक्ता दाता सुर ज्ञानी।।
योवनवंत बुद्धि वलवीरा। वतिस लक्षन तन काम शरीरा।।
ऊँचो करम दिरघ परमाई। जो गोरी शिव होय सहाई।।
विश्राम:-
यतना लच्छन जाहि पंह, देखों सकल सुभाव।
तापे यज्ञ अरांमेहों, नातरु योवन जाव।।40।।
चौपाई:-
जब इतना परमारथ सनेऊ। घरी एक मन मोह अस गुनेंऊ।।
कह मैना मन मांह विचारी। एक वचन सुनु श्रवण हमारी।।
मैं तांहि लागि परीक्षा करिहों। यहि दिशि खोजि महोदधि तरिहों।।
ढूँढां फिरि फिरि राज रजाई। मगु खोजत खोजत मिलिजाई।।
विश्राम:-
तोर भाग सुनु सुन्दरी, जिय कर करों न लोभ।
जो जगदीश मिलावहीं, तो पाओ जग शोभ।।41।।
चौपाई:-
हम पंखी मन होय तंह जाहीं। सप्त द्वीप नवखंड उडाहीं।।
कानन औ गिरि गहूर जाहीं। विधि की कृपा विकट कछु नाहीं।।
अब ऐक वचन अवर सुन मोरी। जग विधि ने सिरजा तुव जोरी।।
प्रगट न करों विधातहिं लाई। जहां होय तंह हमहों जाई।।
जो जग मोहि देय कर्त्तारा। ले आओं कोनिउ परकारा।।
विश्राम:-
तू अपने जिय सुन्दरी, वचन धरे जो मोरि।
राजकुमारहिं ले फिरों, रहे प्रतिज्ञ मोरि।।42।।
चौपाई:-
कह रानी सुनु पंखि सयानी। तुम जो कही विपरीत कहानी।।
तुम जो चेतहु काज हमारा। तोहरे कहे कि करे भुआरा?।।
तुम पंखी हो अल्प शरीरा। मारत धरत जगत नहि पीरा।।
जो तुम मैना परवश परहू। तो भल काज हमारो करहू।।
तोहरे आस जन्म चलि जाई। तो तुमको कस होत बड़ाई।।
विश्राम:-
धरनी दियो सिखावनी, मैना करो विचार।
गरुअ भार जो जानिये, सो कस धरि अंकवार।।43।।
चौपाई:-
पुनि परमारथ उत्तर दियऊ। मंत्र भला तुम सुन्दरि कियऊ।।
बरस दिवस को करहु नियारा। खोजि ले आओं राजकुमारा।।
अवध पूजि नहि मिलै कुमारा। तब करि हो जस मनहि विचारा।।
दोउ मिलि मंत्र यहं ठहराई। साधि घरी मैना बहराई।।
चलु परमारथ आनन्द भाऊ। आगिल बात कहत सब काऊ।।
विश्राम:-
धरनीश्वर को ध्यानधरि, गवनी पार किनार।
अब शरणागति रावरी, धरनी जीवन सार।।44।।