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राजकुमार मनमोहन और मैना का प्रेम / प्रेम प्रगास / धरनीदास

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चौपाई:-

मैना पुनि पिंजरा पहिराई। परमारथ तेहि नाम सुनाई।।
तबते पलक न करै नियारा। मैना छांड़ि न करै अहारा।।
दूबो चतुर दुबो सुर ज्ञानी। छिनु छिनु बोलहिं अमृत वानी।।
वासर बीति बहुत जब गयऊ। एक दिवस मैना अस कहेऊ।।
हम पंखी तुम राजकुमारा। विधिवश भयउ प्रेम-व्यवहारा।।
तोहितन युवा अवस्था आई। विधिना दीन्हो सुन्दरताई।।

विश्राम:-

मोमन में ऐसो भवो, ढूंढों सब नृप पाहिं।
देव मूरति जहं बालिका, लाओ कुंअर विवाहि।।12।।

चौपाई:-

सुनत कुंअर मन भयउ हुलासा। तृषावंत जल पायउ खासा।।
जब तोहरे मन ऐसी आई। करहु कृपा किन जाहु उड़ाई।।
तब मैना ज्योतिष परकाशा। विविध चक्र नव ग्रहन निवासा।।
सुदिन सुलगन नक्षत्र सुयोगा। एको भांति न देखु अयोगा।।
तुला दिवस दूवहु मनमाना। तेहि दिन मैना कियउ पयाना।।

विश्राम:-

प्रथमहि चलिभौ पर्वतहिं, जंहवा कुल परिवार।
आनंद कही सबै मिली, बहु-न्योछावरि सारि।।13।।