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राजनीतिक जोगीरा / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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‘आलू ला’ उनटाकऽ पढ़बै तखन बुझायत मर्म
राजनीतिमे अपकर्मे सब कहबै छै सत्कर्म
धर्म कलियुगक थिकै ई, अहाँकेँ त्रेता चाही,
एतऽज्ञाताक तबाही,
कते काटब खुरछाही?
कर्म मे लागल ताही।
राजनीति कोविद कोबी दऽ बजला लागय नीक,
चरू उछन्न, मना के करइछ? सबटा थीक अहींक।
टीक ओझराउ समाजक,
छूति अछिए ने लाजक,
अहींटा तँ छी काजक
लूरि सिखने छी बाजक।
पापड़ थिक तरकारिक नेता छेकि लेत भरिपात,
मुदा ममोड़ि दियौ मुट्ठीमे देखू तखन बिसात
दाँतहुक किछु न प्रयोजन,
कथीलै किछु आयोजन?
अठन्नी भरिए ओजन,
प्रेमसँ करिऔ भोजन।
रस्ते बनतै बान्ह, बान्ह धरि चल जयतै पाताल,
मण्डल-मण्डिलमे बाझल छै, देखबै ने रङताल
लाल अछि भेल निपत्ता,
कतेकक कटतै पत्ता,
चहटर होइ छै सत्ता
अकिल चाही अलबत्ता।
आयल छै फगुआ, बगुला पर चढ़ि सकैत छै रंग,
कौआ तँ कौआ थिक बौआ! भऽ न सकय बदरंग
भंग बरू अंग करत ओ,
जंगलक बाट धरत ओ,
तामसेँ पाकि जरत ओ
आनि पर फाटि मरतओ।
फगुआ छै मन उमकि गेल तँ घीचू दसटा डंड,
कालक डंडा लगला पर टूटत सब मनक घमण्ड।
खण्ड नहि, सौंस सुपारी,
पाउ ताबत सरकारी,
थिकहूँ ‘भोट’क व्यापारी
पड़त पाछाँ पिहकारी।
माल साँठि भीतर ढुकबौलहूँ, पूआ चाटि रहल छी,
बाँटि रहल छी जहर ताहि पर उनटे फाटि रहल छी।
काटि रहलहुँ ने चीनी?
भाङ दूधेमे छानी,
पड़त ससरी पर फानी,
तखन मन पड़ती नानी।
फूलि गेल अछि गाल लाउ ने दै छी औँसि गुलाल
फूटल ढोल जकाँ छी बजइत होयबे करब हलाल
ताल तखने ने लागत,
बुद्धि पर लुत्ती दागत,
करय जे बढ़ि-चढ़ि स्वागत
छोड़ि सेहो सब भागत।
भेल होलिकादहन ताहिमे सकुशल छथि प्रहलाद,
किन्तु हिरण्यकशिपुकेँ ताहिमे सकुशल छथि उन्माद
स्वाद चिखता यमलोकक,
आँखिमे धूरा झोंकक
पीठमे छुरा भोंकक
एखन किछु काज न टोकक।
2
तगड़ा युवा प्रधानेमन्त्री बौआ श्री राजीव।
धरितहि गद्दी करतब अपन देखौलहुँ बेस सजीव।
पहिल फुचुक्का कुंकुम घोरल सुक्खा कने गुलाल
आउ गालपर औँसि दैत छी, मुसकथि मोतीलाल
देखि परनाँतिक शोभा। बेलमे मारू चोभा।