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राजनीति की कसौटी / ऋतु त्यागी
Kavita Kosh से
सबको पछाड़कर
आगे बढ़ने की कला में
वह निष्णात था।
दूसरों के अधिकारों में सेंध लगाते हुए
उसे अक्सर देखा जा सकता था।
कईं बार वह औरों को धकियाने से भी
परहेज़ न करता था।
शीर्ष पर पहुँचने की उसकी लालसा उसकी आँखों में
बल्ब की तेज़ रोशनी की तरह
कभी भी चमक उठती।
दूसरों के कानों में
बातों की बत्ती डालकर घुमाने का उसका अपना अंदाज था।
राजनीति की गुणवत्ता की कसौटी पर
जब उसे परखा गया
तब वह उस पर
शत-प्रतिशत खरा पाया गया ।