भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजा की बरात / ब्रजमोहन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राजा की बरात में रे सोने के हाथी
हाथी पे बैठा मुसकाए राजा
हँस-हँस नाचे सभी, छिप-छिप कोड़ा भी दिखाए राजा ...

गाँव के कलेजे में रे दरद है भारी
सज-धज निकली है राजा की सवारी
सिर लटकाएँ जो रूखे-सूखे चेहरे
चारों ओर कड़े हैं राजा के पहरे
खाए रे डकारें लेके पेट पे हाथ फिराए ... राजा...

राजा के सिपाही सब राजा की बरात में
बरछी-भाले लिए देखो दोनों हाथ में
परजा की खाल पे रे बजता नगाड़ा
राजा की बरात है या कंस का अखाड़ा
बजते नगाड़े पे रे मोटी-मोटी आँख नचाए ... राजा...

चाँदी की जूती पे रे सोने का पानी
बाढ़ जैसे आए ऐसी रानी की जवानी
रानी के भी पाँव धरती पे नहीं पड़ते
उचक-उचक देखे गाँव रे उजड़ते
देखे रे देखे रानी कितनी धूल उड़ाए ... राजा...

देखे सारा गाँव देखे राजा की बरात को
दिन में ही घिर आई काली-काली रात को
हँसता है चेहरा हँसे राजाजी की आँखें
आदमी को जो ग़ुलामों की तरह से हाँके
ख़ुशी-ख़ुशी झूम-झूम गाँव के गाँव जलाए ... राजा...

राजा है या है रे कोई ज़ुल्मों का कोड़ा
परजा का ख़ून पीके धन सारा जोड़ा
धन सारा जोड़ा रे उड़ाए किस शान से
बिजली गिराए जैसे कोई आसमान से
गुस्से में आए परजा राजा को धूल चटाए परजा...
                           राजा का ब्याह रचाए परजा ! ...