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राजा जनक के घने हैं बगीचा / बुन्देली

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राजा जनक के घने हैं बगीचा सिया फूल बीनन जायें मोरे लाल।
बीनबान बेटी भर लई टिपरिया हो गई ब्याहन जोग मोरे लाल।
उतई से आये राम लक्ष्मन जू पूछें कै तुम कन्या कुँआरी मोरे लाल।
न हम लला वर ब्याहे कहिये हम तो कन्या कुँआरी मोरे लाल।
राम हँसे लछमन मुसकाने रघुबर ने गह लई बाँह मोरे लाल।
मुरक जैहै मोरी काँच की चुरियाँ फट जैहे दक्खन चीर मोरे लाल।
सौने मड़ाय दऊँ दोनो कलैंया और मँगाऊ दक्खन चीर मोरे लाल।
कै तुम लला वर ब्याहे कहिये कै तुम कुँअर कँवारे मोरे लाल।
न हम लली वर ब्याहे कहिए हम तो कुँअर कँवारे मोरे लाल।
कौन देस के तुम दोनों भैया कहा तुमारौं नाम मोरे लाल।
नगर अजुद्धा के हम दोई भैया दशरथ पिता हैं नाम मोरे लाल।
हालत कम्पत बेटी घरई कौ आई मैया मोरो पलंग बिछाओ मोरे लाल।
कै बेटी तुमरे मूड़ पिराने कै तुम्हें चढ़ौ है बुखार मोरे लाल।
न मेरी मैया मेरो मूड़ पिरानौ न हमें चढ़ौ है बुखार मोरे लाल।
ऐसे तौ वर मैया कबहुँ न देखे जैसे वर बागन पाये मोरे लाल।
नगर अजुद्धा के वे दोई भैया दशरथ पिता है नाम मोरे लाल।
इतनी जो सुनकै मैया चढ़ गई अटरिया बाबुल से कहतीं बात मोरे लाल।
केसे जो अनमने बैठे महाराजा बेटी भई ब्याहन जोग मोरे लाल।
आओ रे नउआ आओ बमना बेटी कौं घर वर ढूँढ़ों मोरे लाल।
एक दिना सिया मन में सोच रई मंदिर की कर लै सफाई मोरे लाल।
दायनौं हाथ सिया गोबर में धारे डेढ़े से धनुष उठाये मोरे लाल।
उतरई से आये राजा जनकजू पूछें कौना ने धनुष उठाये मोरे लाल।
इतनी वली मोरी सीता लाड़ली दूने वली वर होंय मोरे लाल।
उनई कौ हम अपनी सीता ब्याहैं छिंगरी से डारै धनु तोड़ मोरे लाल।