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राजा / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
वह खुद से कितना छोटा है कहना मुश्किल है
हो सकता है वह अपनी जेब में बैठा हुआ हो
या अपने रूमाल में बँधा हो
उसकी छाया दिखती है तन कर मंच पर खड़ी
हाथ हिलाती, मुस्कराती
वही करती दस्तावेजों पर हस्ताक्षर
मिलती राष्ट्राध्यक्षों से
देती प्रजा को आश्वासन
उसकी छाया को और ऊँचा
और उन्नत बनाने के उपायों पर
मनन करते उच्चाधिकारी, विद्वान और पुरोहित
पर इससे राजा घबराया रहता है
ज्यों-ज्यों बढ़ती जाती है उसकी छवि
वह होता जाता है और छोटा
और छोटा और छोटा।