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राज नहीं यो कसाई वाड़ा यो गरीब क्यूं मार दिया / अमर सिंह छाछिया

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राज नहीं यो कसाई वाड़ा यो गरीब क्यूं मार दिया।
हे हे रै बेइमान।...टेक

सारे इसम्हं एक, नहीं फर्क बड़े और छोटे म्हं।
कोए करता ऐश अमीरी कोए दुविधा टोटे म्हं।
किसे कै कोठी बिल्डिंग कोए काटै रात टाटे म्हं।
कोए बदलै ड्रेस कई बर दिन म्हं कोए लत्ते पाटे म्हं।
यो जिन्दगी भर ना उभर सकै तैं उड़ै ए राख दिया।

एक कमाऊ कुणबा ज्यादा मुश्कल पूरा पाटै सै।
धन दौलत ऐ माणस की इज्जत नै राखै सै।
शाम मिलै तो ना मिलै सबेरी यो भूख कालजा काटै सै।
याणे बालक ये बुलबुल से इन नै मुश्कल डाटै सै।
उधार देण नै यो लाला नाटै इसका के हम नै खा लिया...

40 रु. किलो आवै चीनी धोण महीने की लागै।
50 रु. किलो आवै दूध यो भी आधा पाणी लागे।
250 रु. किलो पत्ती या भी पूरी लागै।
दिन म्हं दस बर बणती चाय या भी फीकी लागै।
धड़ी रोज का लागै गेहूं 1600 ऊपर जा लिया...

जमींदार भी राजी होग्या फसल देख के खेत म्हं।
तैं तो खरबूजा सै सरकार का जावै उसकी भेट म्हं
लेकै चक्कू वो काटैगा बैठ्या तेरी देख म्हं।
तेरी बोली भी ना होण देगा लेगा आपणे भा के म्हं।
जिसनै करी महंगाई अमरसिंह उसका बणा के पुतला जला दिया...