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राज वापस / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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जार जार दुरपदी के बिलखती देखी रामा।
अंध राजा दया उर लाबैय हो सांवलिया॥
पोटी पाटी दुरयोधन के कैसों राजी करैय रामा।
द्रोपदी समेत राज लौटावैय हो सांवलिया॥
कुछ काल राज करैय धरम राज युधिष्ठिर।
सुख शांति सुधा बरसावैय हो सांवलिया॥
पर दुरयोधन मनमां में उठत तरंग रामा।
पाण्डव के नास करे लेल हो सांवलिया॥
साथ करी शकुनी के फेरू जुवा खेलैय रामा।
राज पाट जीतैय कांत मारैय हो सांवलिया॥