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राति : जे मोन पड़ैए / चंदन कुमार झा

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कोदरिकट्टा मेघक दोगसँ
हुलकी दैत इजोरियाक नजरि
जखने गेल रहैक माँझ अँगनामे
पटियापर पड़ल चानपर
ओ लजा गेल रहैक
लाजे कठुआ गेल रहैक
मद्धिम होमय लागल रहैक
ओकर इजोत, आ' कि एतबेमे
नाचि उठलैक भगजोगनी
झिंगुरक टिटकारीपर,
आ हँसल रही अहाँ
पसरि गेल रहैक फेर इजोते-इजोत,
अँगनासँ अकास धरि

अहींक उच्छावासक मंद-मदिर झोँक
दोमि देलकै कुमुदनीकेँ
उठल रहैक डबरामे प्रेमक हिलकोर
महमहा उठलैक दुरखा लगमे रातरानी
दलानपर सिंगरहार
बाड़ीक कनैल
अँगनाक तुलसी
बथानक पसु फेरने रहैक करोट
छोड़ने रहैक निसाँस
साइत व्याकुल सन भऽ गेल हेतैक
एहि चन्द्राभामे
एहि मदिरानिलक झोंकमे
ओकरो मोन

मेघ मोटा गेल रहैक
मुदा, तखनो रहैक पसरल
अँगनासँ अकास धरि इजोते-इजोत
झिंगुर गाबि रहल छल
राग मालकोस,
सोझाँमे बैसल रहैक भगजोगनी
हाथमे घुंघरू लेने भावविभोर

बसातक गमगमी एखनो घटल नहि रहैक
स्नेहसिक्त बसातक शीतलता
पसुक मोनमे आगि पजारि देने छलैक
ओ बेर-बेर फोफिया उठैत छल
जेना भितरे-भीतर डिरिआइत हो

सब किछु ठामहि छलैक
मुदा, जेना लगैत छल किछु नहि हो
हम रही, अहाँ रही आर किछु नहि हो
हमहूँ-अहाँ कहाँ रही फराक-फराक
अहाँमे हम, हमरामे अहाँ, एक्के रही
दू नहि आ किछु नहि छल
सब छल आ किछु नहि छल
आह! केहन रहैक ओ राति?
जकर रही अहाँ रातरानी गमगम करैत
हम अहींक देहक गन्धसँ आसक्त
समाए चाहैत रही अहींमे,
हाय रे हमर ओ प्रयास
हाय रे अहाँक उच्छावास
किछु नहि रहैक जेना
हमहुँ-अहाँ नहि रही जेना
सब किछु शान्त, निःशब्द,
तखने सम्भवतः सुनने रही चटकारी
कोनो दिव्य कमलक प्रस्फुटनक स्फोट
जेना नव सृष्टिक उद्भव भेल हो
भऽ गेल रहैक भोर