भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात अंधेरा लिए आती हाथ में / बी. एल. माली ’अशांत’
Kavita Kosh से
हेली मेरी !
अचरज में नहीं है आदमी
डूब डूबो रही है मानव-हेत
रात अंधेरा लिए आती हाथ में
कांस ऊगी हुई है धरती ऊपर
निपट अंधेरे के पड़ रहे हैं हाथ
चूक से नहीं चेतना लेता है आदमी
अंधेरी जोहड़ी लेगी भख !
हेली मेरी !
मुड़, बचाले मिनखजात को
जोग जगाएं अपूर्व भूत
बिड़द बचेगी तो ही
ज्योति दीपेगी
हेली मेरी !
युग के पीछे कीचड़ में है पैर
हाथ मवाद से गहरे लिपटे हुए
भयानक कहराहट लिए आवाज
बच्चे तुम्हारे डरेंगे !
हेली मेरी !
रात अंधेरा लिए आती हाथ में
आ, बचा ले मानव-जीवन ।
अनुवाद : नीरज दइया