भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात आधी हो गई है / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात आधी हो गई है!

जागता मैं आँख फाड़े,
हाय, सुधियों के सहारे,
जब कि दुनिया स्‍वप्‍न के जादू-भवन में खो गई है!
रात आधी हो गई है!

सुन रहा हूँ, शांति इतनी,
है टपकती बूंद जितनी
ओस की, जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गई है?
रात आधी हो गई है!

दे रही कितना दिलासा,
आ झरोखे से ज़रा-सा,
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गई है!
रात आधी हो गई है!