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रात और दिन / जया जादवानी
Kavita Kosh से
जो ख़्वाब दिन में दफ़ना दिए जाते हैं
उनके बीज फूटते हैं नींदों में
नींदें जब रोती चीख़-चीख़
आवाज़ दिन में सुनाई देती है
यूँ एक-दूसरे का बोझ
बाँट लेते हैं
रात और दिन
जैसे कुली थक जाता है
एक कन्धे पर रखे बोझ से
वो दूसरे पे उठाता है