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रात की बात / रमानाथ अवस्थी
Kavita Kosh से
रात की बात, रात को होगी
दिन भर की आपाधापी से
मन का दर्पण धुँधलाया है ।
जिसने जितना दिया यहाँ पर
उसने उतना ही पाया है ।
सबकुछ पा लेने की धुन में
सबके सब दिखते हैं रोगी ।
सत्य एक होता है उसको
पाने वाले कम ही होते ।
एक समय आता है जब हम
बिना चाह के सब कुछ खोते
ऐसे दुख में कभी न फँसता
केवल एक अकेला योगी ।
वैसे तो दुख तरह-तरह के
पर दौलत का दुख अजीब है
जो केवल पैसे पर मरता
वही यहाँ सबसे ग़रीब है
ऐसे दुख का अर्थ जानता
दुनिया में बस केवल भोगी ।