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रात की सिसकियों से आहत हूँ / कैलाश झा 'किंकर'

रात की सिसकियों से आहत हूँ।
छोड़िए मैं तो इक कहावत हूँ॥

दौलतों से न तौलिए मुझको
आज मैं भी किसी की चाहत हूँ।

दिन निकलते ही व्यस्त होऊँगा
अपने संसार की मैं ताकत हूँ।

देख लो ग़ौर से जहाँ वालो
 मैं ही जग का महान भारत हूँ।

आपकी हर दुआ कुबूल हुई
इसलिए मैं सही-सलामत हूँ।

लाख कोशिश हुई मिटाने की
फिर भी जिन्दा हूँ मैं बग़ावत हूँ।