भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात दिन बस मेरा यह हाल रहा / सिया सचदेव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात दिन बस मेरा यह हाल रहा
हर घड़ी तेरा ही ख्याल रहा

ज़ुल्म में तू भी बेमिसाल रहा
सब्र में मेरा भी कमाल रहा

मैं हूँ बरबाद और तू आबाद
कब मुझे इसका कुछ मलाल रहा

उस से मैं उम्र भर न पूछ सकी
दिल का दिल में ही इक सवाल रहा

मुझ से इक दिन भी वो खफा न हुआ
कितना अच्छा यह मेरा साल रहा

साथ उसका था हर कदम पे सिया
फिर भी दिल ये मेरा निढाल रहा