रात में रेल / चंद्रभूषण
रात में रेल चलती है
रेल में रात चलती है
खिड़की की छड़ें पकड़कर
भीतर उतर आता है
रात में चलता हुआ चांद
पटरियों पर पहियों सा
माथे पर खट-खट बजता है
छिटकी हुई सघन चांदनी
रेल का रस्ता रोके खड़ी है
रुकी हुई रेल सीटी देकर
धीरे-धीरे सरकती है
अधसीसी के दर्द की तरह
हवा पेड़ों के सलेटी सिरों पर
ऐंठती हुई गोल-गोल घूमती है
आधी से ज्यादा जा चुकी रात में
सोए पड़े हैं ट्रेन भर लोग
लेकिन कहीं कुछ दुविधा है-
ड्राइवर से फोन पर निंदासी आवाज में
झुरझुरी लेता सा बोलता है गार्ड-
'शायद कोई गाड़ी से उतर गया है...
अभी-अभी मैंने किसी को
नीचे की तरफ जाते देखा है...'
नम और शांत रात में
उड़ता हुआ रात का एक पंछी
नीचे की तरफ देखता है
वहां खेत में रुके हुए पानी के किनारे
चुपचाप बैठा कोई रो रहा है
पानी में पिघले हुए चांद को निहारता
बुदबुदाता हुआ सोना...सोना...
और लो, यह क्या हुआ?
सात समुंदर पार भरी दोपहरी में
लेनोवो का मास्टर सर्वर बैठ गया!
घंटे भर बेवजह सिस्टम पर बैठी
जम्हाइयां ले रही सोना सान्याल
ब्वाय फ्रेंड को फोन मिलाती हैं-
'पीक आवर में सर्वर बैठ गया,
अमेरिका का भगवान ही मालिक है'
दू...र गुम होती लाल बत्तियां
फोन पर ही हैडलाइट को बोलती हैं-
'बताओ...ऐसे वीराने में ट्रेन से उतर गया,
इस इंडिया का तो भगवान ही मालिक है'