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रात में / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
पेड़ भी कुछ सोचते होंगे
आदमी के बारे में
एक बार ऐसी कल्पना करके देखिए
फिर अपने को विश्वास दिलाइए
कि हुंह, पेड़ क्या सोच सकते हैं भला
बकवास, विशुद्ध कवि-कल्पना
और फिर सोने की कोशिश कीजिए
और अगर नींद आ जाए तो सो जाइए
मैं आपसे मना तो नहीं कर रहा।