भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात / नचिकेता
Kavita Kosh से
पाखी लौट घरों को आए
अंधकार ने पर फैलाए
थकान मिटाने को दिन भर की
सोयीं आँखें गाँव-नगर की
घर, आँगन, छप्पर अलसाए
अंधकार ने पर फैलाए
जागी दुनिया आसमान की
अगवानी करने विहान की
तारों के मुखड़े मुस्काए
अंधकार ने पर फैलाए
नई उमंग लिए आएँगे
श्रम के गीत पुन: गाएँगे
धरती के बेटे तरुणाए
अंधकार ने पर फैलाए